Experiment of J. Kerens (An evidence of semiconservative replication of DNA)

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डीएनए की अर्द्ध- सरंक्षी प्रतिकृति :- 

डीएनए की अर्ध सरक्षी विधि में डीएनए के दोनों सूत्र एक दूसरे से अलग होकर अपने अपने अस्तित्व को बनाए रखेंगे और प्रत्येक सूत्र कोशिका में उपलब्ध न्यूक्लियोटाइड्स से अपने संपूरक सूत्र का संश्लेषण कर लेंगे।

इसके फलस्वरूप नए संश्लेषित अणु में पाए जाने वाले दोनों सूत्रों में से एक जनक अणु से प्राप्त होगा और दूसरा नए सिरे से संश्लेषित किया जाएगा।

डीएनए की अर्ध सरक्षी पुनरावृति को सिद्ध करने के लिए निम्न दो प्रयोग प्रमाण के रूप में प्रस्तुत हैं- 

1. मेसलसन और स्टाहल का प्रयोग

2. केरेंस का ऑटोरेडियोग्राफी प्रयोग


प्रयोग नंबर 1. मेसलसन और स्टाहल का प्रयोग पहले प्रकाशित किया जा चुका है इसलिए उसका वर्णन मैं यहां नहीं करूंगा उसका लिंक नीचे दिया जा रहा है आप उस पर क्लिक करके उसका अध्ययन कर सकते हैं व पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।


डीएनए की अर्द्ध - सरंक्षी प्रतिकृति ( मेसल्सन एवं स्टाहल का प्रयोग) 👈 मेसल्सन एवं स्टाहल का प्रयोग अध्ययन करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

2. केरेंस का ऑटोरेडियोग्राफी प्रयोग :- 

जीवाणु में गुणसूत्र की पुनरावृति की अर्द्ध संरक्षी विधि को जे. केरेंस ने ऑटोरेडियोग्राफी एक सफल प्रयोग द्वारा प्रदर्शित किया।
इस प्रयोग का संक्षिप्त वर्णन नीचे दिया गया है- 

  • ऑटोरेडियोग्राफी में सबसे पहले प्रायोगिक सामग्री को Tritiated thymidine (H3 - Tdr) जैसे उचित रेडियो एक्टिव पदार्थ में रखा जाता है।
  •  इसमें H3 हाइड्रोजन का भारी समस्थानिक होता है, जो थाइमिडीन में पाई जाने वाली सामान्य हाइड्रोजन को प्रतिस्थापित करके Tritiated Thymidine बना देता हैं। 
  • Thymidine क्षार का उपयोग इसलिए किया गया क्योंकि Thymidine क्षार केवल डीएनए में ही पाया जाता है।
  • अब Tritiated Thymidine DNA का भाग बन जाती है। इसके बाद सामग्री या जीवाणु का सेक्शन काटा जाता है और स्लाइड तैयार की जाती है ।
  • इसके पश्चात इन स्लाइडो को फोटोग्राफी एमल्शन से ढक कर अंधेरे में रख दिया जाता है।
  • अंधेरे स्थान में संभरण के समय में Tritiated thymidine से जो कण निकलेंगे वे फिल्म को उन्हीं स्थानों पर अनावृत करेंगे। बाद में इस फिल्म को डेवलप कर लिया जाता है जिसमें ट्रीटीयम की उपस्थिति के स्थान स्पष्ट दिखाई देते हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से डीएनए की उपस्थिति को ही प्रकट करते हैं।
  • इससे जो नई डीएनए स्ट्रैंड बनेगी उसमें रेडियोएक्टिव थायमिन हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देगी और पुरानी वाली स्ट्रैंड में रेडियो एक्टिव थायमीन नहीं होने के कारण वह दिखाई नहीं देगी इससे पता चलता है की डीएनए का जो नया अनु बनता है उसमें एक सूत्र पैतृक होता है और एक सूत्र नया बनता है। जो डीएनए की सेमीकंजरवेटिव रिप्लिकेशन को प्रदर्शित करता है।



ऊपर बताई गई विधि का उपयोग करके J. Kerens ने आसानी से डीएनए की पुनरावृति की अर्द्ध संरक्षी विधि का अध्ययन किया और 1963 में इस प्रयोग के परिणामों को प्रकाशित किया था।


Kerens ने ई- कोलाई की एक पीढ़ी के समय का अनुमान 30 मिनट लगाया था।

प्रतिकृत गुणसूत्र की लंबाई लगभग 1 mm नापी गई।

प्रतिकृत डीएनए की लंबाई लगभग 30 मीटर से 40 मीटर प्रति सेकंड मापी गई। 


Thank you ! 



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