जानिए- कानून की भाषा के वो शब्द, जिनके अर्थ जानना सभी के लिए जरूरी है !

 


हम भारत के लोगों ने ये संविधान खुद को दिया है. इसलिए इसके तहत लिए गए हर फैसले, हर कानून से सामान्य नागरिक सीधा कनेक्ट महसूस करे, ये सुनिश्चित करना होगा. प्रधानमंत्री मोदी ने भी संविधान दिवस पर कहा कि हमारे कानूनों की भाषा इतनी आसान होनी चाहिए कि सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी उसे समझ सके. आइए जानते हैं कानून की भाषा के कुछ शब्द, जिनका अर्थ जानना जरूरी है।

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फौजदारीजिस न्यायालय में मारपीट-हत्या आदि संबंधी मुकदमों की सुनवाई होती है. भारतीय दंड संहिता में कई कानूनों के द्वारा कुछ कृत्यों और कुछ अकृत्यों को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है. इन अपराधिक कृत्यों और अकृत्यों के लिए दंड निश्चित किया गया है. ये सभी  मामले जिनमें किसी व्यक्ति को कोई अपराध करने के लिए दंड की कार्रवाई हो तो वे मामले अपराधिक या फौजदारी मामले कहे जाते हैं।

दीवानी अदालत को सिविल न्यायालय कहा जाता है. इस न्यायालय में संपत्ति या अर्थ संबंधी व्यवहारों या मुकदमों का विचार या निर्णय होता है. दीवानी मामला वो है जिसमें संपत्ति सम्बन्धी या पद सम्बन्धी अधिकार विवादित हो, चाहे ऐसा विवादित अधिकार धार्मिक कृत्यों या कर्मों सम्बन्धी प्रश्नों पर अवलम्बित क्यों न हो. ऐसा वाद दीवानी वाद या मुकदमा कहलाता है।



धारा और अनुच्छेद क्या है ?

धारा जो अंग्रेजी में ‘सेक्शन’ कहलाती है. धारा अधिनियम का महत्वपूर्ण हिस्सा है.  किसी भी अधिनियम में खासतौर पर धारा ही प्रयोग में लाई जाती है, लेकिन कुछ अधिनियम में आदेश और नियम भी पाए जाते हैं।

संविधान को अलग–अलग हिस्सों में बांटा गया है, ये हिस्से अनुच्छेद में बंटे हैं. लेकिन अलग–अलग हिस्से के लिए अलग – अलग अनुच्छेद नहीं होते हैं. जैसे अनुच्छेद 1 से अनुच्छेद 400 पर संविधान ख़त्म होता है लेकिन इसके अलग-अलग भाग में कानून को परिभाषित किया गया है।


मुल्तवी शब्द का अर्थ

 
आपने फिल्मों में सुना होगा जब अदालत में जज कहता है कि आज की सुनवाई मुल्तवी की जाती है. इस शब्द को अंग्रेजी में
adjourned कहते हैं जिसका हिंदी में अर्थ रुका हुआ या स्थगित कहा जाता है. इस तरह केस की सुनवाई को अगली सुनवाई तक मुल्तवी यानी पोस्टपोन या टाल दिया जाता है।


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क्या है मुवक्क‍िल 

जब कोई अपना मुकदमा आदि लड़ने के लिए किसी को अपना वकील नियुक्त करता है, उसे मुवक्क‍िल कहा जाता है. मुस्लिम धर्मशास्त्र के अनुसार किसी काम के लिए नियुक्त फरिश्ता मुवक्क‍िल कहलाता है।


इंतखाब 
पटवारी के खाते के अनुसार प्रस्तुत की हुई वह नकल या प्रतिलिपि जिसमें यह लिखा रहता है कि किस सन् में किस खेत का मालिक कौन था और उसने कितना जोता-बोया था. ये कागजात इंतखाब कहलाते हैं।





कुछ शब्द-अर्थ जो पुलिस के काम में हो रहे इस्तेमाल
थाना-हाजा- थाने पर उपस्थिति
जुर्म दफा- अपराध धारा
जामा तलाशी- व्यक्ति की तलाशी
खाना तलाशी- स्थान की तलाशी
जराइम- अपराध
हस्बजैल- उपरोक्तानुसार

जुदा खाना- अलग से
मसरूका- मुकदमे का गया माल
वाजयाफ्ता- मुकदमे में बरामद माल
फर्द- स्पेशल दस्तावेज
हस्ब कायदा- नियमानुसार
मुर्तिब - तैयार करना
फिकरा - पैराग्राफ
मौतबिरान - गवाह
अदम सबूत- साक्ष्य के अभाव में



बिल और अधिनियम-

आधुनिक समय में राज्य द्वारा अपने राज्य के भीतर राज्य के संचालन और राज्य के नागरिक तथा गैर नागरिकों के लिए आदेशों को विधि कहा जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 में विधि को परिभाषित किया गया है, जिसमे अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि या प्रथा विधि माना गया है।

अधिनियम इस ही विधि का एक हिस्सा है। अधिनियम एक सहिंताबद्ध विधि है, जिसमें किसी विशेष विषय पर राज्य का व्यवस्थित विधान होता है। अधिनियम संसद की बनायी सबसे शक्तिशाली विधि होती है।अधिनियम को अध्ययन, धाराओं और उपधाराओं के अंतर्गत सुविधाओं के हिसाब से बांटा जा सकता है। वैसे अधिनियम में धाराएं और उपधारा आवश्यक रूप से होती ही हैं।

बिल संसदीय विधि का शैशव काल है। कोई अधिनियम बिल होने के बाद ही अधिनियम का रूप लेता है। एक तरह से बिल जब बहुमत प्राप्त कर जाता है तो वह अधिनियम हो जाता है। बगैर यथेष्ट बहुमत प्राप्त किए कोई बिल अधिनियम का रूप नहीं धारण करता है। यदि बिल बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है तो यह कहा जा सकता है कि अधिनियम अपने शैशव काम मे ही मर गया। बिल यथेष्ट सदनों और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से मोहर लगने पर ही अधिनियम होता है। बिल पर जैसे ही राष्ट्रपति अपनी मोहर लगाते हैं, वह अधिनियम होकर राज्य में विधि बनकर लागू हो जाता है। बिल को विधि नहीं कहा जा सकता, क्योंकि बिल आदेशात्मक रूप से राज्य में लागू नहीं होता है वह संसद में ही रहता है। बिल का विकसित रूप अधिनियम होता है।

ज़मानती और दोषमुक्त-

बहुत से मामलों में ज़मानती आरोपी को दोषमुक्त समझ लिया जाता है। ज़मानती और दोषमुक्त में अंतर होता है और अंतर बहुत बड़ा अंतर है।

भारत की आपराधिक वैधानिक व्यवस्था उदारतापूर्वक है। यहां किसी भी आरोपी को ज़मानत पर छोड़े जाने के नियम रखे गए हैं। ज़मानती और गैर-ज़मानती अपराधों का वर्गीकरण किया गया है।

ज़मानती-

ज़मानती का अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जिस पर कोई अभियोजन चल है और न्यायलयों द्वारा उस व्यक्ति को जमानत या मुचलके पर छोड़ा गया है तथा उसके दोषसिद्ध होने पर उसे पुनः हिरासत में ले लिया जाएगा।

दोषमुक्ति-

दोषमुक्ति का अर्थ है आरोपी को विचारण में सभी तरह के आरोपो से दोषमुक्त कर दिया गया तथा आरोपी अब दोषमुक्त है, जितने आरोप उस पर लगाये थे वह कोई भी सिद्ध नहीं हुए।

आरोपी और दोषसिद्ध-

आरोपी और दोषसिद्ध में भी अंतर है।आरोपी वह व्यक्ति है, जिस पर राज्य द्वारा किसी अपराध में अभियोजन चलाया जा रहा है। हमारे यहां किसी भी व्यक्ति पर आरोप तय होना तो दूर की बात है एफआईआर दर्ज होते ही उसे दोषसिद्ध घोषित कर दिया जाता है, जबकि भारत में आरोपी को दोषसिद्ध व्यक्ति बनाने तक एक लंबी प्रक्रिया है। अधिकांश भारतीय विचारण जैसी किसी चीज़ को समझते ही नहीं।

दोषसिद्ध-

दोषसिद्ध वह व्यक्ति है जिस पर आरोप लगने के बाद विचारण हो जाने के बाद किसी भी अदालत द्वारा दोषसिद्ध घोषित कर दिया गया है अर्थात आरोपी पर लगे सभी आरोप सिद्ध हो चुके हैं और वह अपराध करने वाला मान लिया गया है तथा उस अपराध के लिए उसे दंड सुना दिया गया है।

राज्य द्वारा आरोप लगाना बहुत सरल है। आरोप तय अदालत द्वारा किये जाते हैं। राज्य पुलिस या अन्य जांच एजेंसी द्वारा अपना अंतिम प्रतिवेदन अदालत के समक्ष पेश कर देता है। आरोप तय करना न्यायालय का काम है। आरोप लगते ही व्यक्ति को दोषसिद्ध नहीं मान लेना चाहिए।

नगर निगम और नगर पालिका-

यह दो शब्दों से भी आम आदमी को बहुत काम होता है। यह दो शब्द जीवन का अहम हिस्सा है। कहते समय इन दोनों शब्दों को एक जैसा समझ लिया जाता है, जबकि शब्द और उसके अर्थ दोनों में बहुत अंतर है।

वैसे तो अलग अलग प्रदेशों के द्वारा अपने अपने निकाय विधान बनाये जाते हैं, परन्तु फिर भी एक व्यवस्थित नियम है कि 20 हज़ार से ऊपर आबादी के कस्बो में और दो लाख से कम आबादी के शहरों में नगर पालिका बनायी जाती है।

दो लाख से ऊपर आबादी के शहरों में नगर निगम बनाई जाती है। नगर निगम और पालिका के नियम अलग अलग है तथा अधिकार कर्तव्य भी अलग अलग अधिरोपित किये गए हैं।

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